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Wednesday, August 10, 2011

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें...

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें | जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें || ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती | ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें || तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा | दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें ||

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